विरासत में कथक नृत्यांगना शिखा शर्मा ने दी खूबसूरत प्रस्तुतियां

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विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के चौथे दिन की शुरुआत विरासत साधना’ कार्यक्रम के साथ हुआ। विरासत साधना कार्यक्रम के अंतर्गत देहरादून के 13 स्कूलों ने प्रतिभाग किया जिसमें कुल 18 बच्चों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत पर आधारित प्रस्तुति दी। गायन में बच्चों ने भारत के लोकप्रिय राग पर अपनी प्रस्तुति दीवही कुछ छात्र-छात्राओं ने भरतनाट्यमकथककुचिपुड़ी प्रस्तुत किया। वाद्य यंत्र पर तबलाहारमोनियम एवं सितार पर भी बच्चों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियां दी। विरासत साधना में प्रतिभाग करने वाले स्कूलों में राजा राममोहन राय अकैडमीसेंट जोसेफ अकैडमीदून इंटरनेशनल स्कूलफलीफोट पब्लिक स्कूलवेल्हम गर्ल्स स्कूलहिम ज्योति स्कूलघुंघुरु कत्थक संगीत महाविद्यालयसमर वैली स्कूलन्यू दून ब्लॉसम स्कूलगुरु राम राय पब्लिक स्कूलतरुण संगीत एवं विचार मंचशेमरॉक नकरौधांएवं सोशल बलूनी पब्लिक स्कूल शामिल थे।

सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं कथक नृत्यांगना शिखा शर्मा ने अपनी खूबसूरत प्रस्तुतियां दी। बताते चले कि नृत्यांगना शिखा शर्मा गुरु रानी खानम की छात्रा हैंजो एक वरिष्ठ नर्तकी और गुरु हैं। उन्होंने खैरागढ़ विश्वविद्यालयछत्तीसगढ़ से मास्टर डिग्री प्राप्त करने के साथ-साथ भातखंडेविशारद एवं प्रवीण जैसे विद्या भी भारत के जाने माने विश्वविद्यालय से प्राप्त कि है। नृत्यांगना शिखा शर्मा भारत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कतर उत्सव युएईयूरोपताइवानरूस जैसे देशों में भी अपनी नृत्य से लोगों को मंत्रमुग्ध किया है।

वही सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुतियों में रामचंद्र गंगोलिस जी द्वारा कबीर ज्ञान कि प्रस्तुतियां हुई जिसमें उन्होंने अमर सूफी कबीर वाणीदोहाभजन सुनायां। धन तेरी करतार कला कामत कर मया को अहंकारसुनो हमारे प्रित जेसे लोकगीत सुनाया। रामचंद्र गंगोलिस जी एक प्रसिद्ध कलाकार हैं जो भारतीय साहित्य और संगीत के साथ-साथ निर्गुण संप्रदाय के आचार्यों की रचनाओं को गाने के लिए जाने जाते हैं।

रामचंद्र गंगोलिया का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुआ था। पिछले 20 वर्षों से वे मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र की लोक शैली में मालवा लोकगीतकबीर और नाथपंथी भजनों को संरक्षित कर पुनर्जीवित किया एवं लोगों के बिच प्रस्तुत करते आ रहे हैं। उन्होंने सांस्कृतिक दल बनाकर मालवा लोक गायन और कबीर गायन को आगे बढाने में अपना योगदान दिया है। रामचंद्र गंगोलिया जी ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर मालवी लोक गायन को जन जन तक पहुचाया है।

इस 15 दिवसीय महोत्सव में भारत के विभिन्न प्रांत से आए हुए संस्थाओं द्वारा स्टॉल भी लगाया गया है जहां पर आप भारत की विविधताओं का आनंद ले सकते हैं। मुख्य रूप से जो स्टाल लगाए गए हैं उनमें भारत के विभिन्न प्रकार के व्यंजनहथकरघा एवं हस्तशिल्प के स्टॉलअफगानी ड्राई फ्रूटपारंपरिक क्रोकरीभारतीय वुडन क्राफ्ट  एवं नागालैंड के बंबू क्राफ्ट के साथ अन्य स्टॉल भी हैं। 

रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थीतबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कलासंस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरासंगीतनृत्यशिल्पपेंटिंगमूर्तिकलारंगमंचकहानी सुनानापारंपरिक व्यंजनआदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है।