जिंदगी - अंजू लता

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जिंदगी देखती है कनखियों से मुझे,

मिलती रहती है पथ पर अक्सर बिखेर देती है खार,

मैं भी निहारती हूँ अभिभूत होकर उसे हर बार,

लुभाती है उसकी हर एक अदा,कर लेती हूँ मैं स्वीकार।

शैशव में हथेलियों से उछाली कई चुमकार,

तत्काल ही सभी कर लेते थे स्वीकार,

नादान थी मैं,नहीं जानती थी, क्या होता है प्यार?

छलती थी उसकी हर एक अदा, कैसे करूं इजहार?

लुभाती है ,करती है ग़मज़दा,कर लेती हूँ मैं स्वीकार।

यौवन में दिखाई आंखें मैंने उसे, लगाती रही फटकार,

फिर भी जाने क्यों करना चाहती थी हरदम मेरा दीदार,

मैंने भी उसे अपना सही पता नहीं बताया,

उसने भी अक्सर मुझे बहुत सताया,

फिर भी जिंदगी से क्यों करते हैं हम इतना प्यार?

भले ही जिंदगी कितनी भी हो दुश्वार।

- डा.अंजु लता सिंह गहलौत, नई दिल्ली