विजय दिवस - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
बाँध पाया कौन अब तक, सिंधु के उद्गार को।
कौन बैरी सह सका है, सैन्य शक्ति प्रहार को।1
सन इकहत्तर में सिखाया था सबक सबसे बड़ा।
पूर्व पाकिस्तान में सेना गयी उद्धार को।2
रिपु करे गुस्ताखियाँ तो, नाश उसका हम करें
सह न पायेगा पड़ोसी, वीरता के ज्वार को।3
कांपता अंतःकरण, फिर भी बघारे शेखियाँ।
दम निकलता युद्ध की, सुन कर तनिक हुंकार को।4
मानसिकता में कलुष भर, छल प्रपंचों में जुटे।
कूटनीतिक योग्यता, अवसर न दे संसार को।5
शत्रु ने खोली कई, आतंक की जो फैक्ट्रियां।
सर्जिकल स्ट्राइक से, फौजें खड़ी संहार को।6
देश ने ली है शपथ, हमला न पहले हम करें।
पर सजग सैनिक खड़े, हैं राष्ट्र के विस्तार को।7
जान देकर हिन्द की, रक्षा करे जो रात दिन।
देश कैसे भूल पाये, फौज़ के उपकार को।8
शौर्यता या फिर विजय का दिन मनाता देश अब।
योजना उत्तम बनायें फौज के सत्कार को।9
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश