"बातें जो कही नहीं गईं" (काव्य संग्रह) - डॉ पूर्णिमा पाण्डेय

Vivratidarpan.com - सरल सहज मृदुभाषी कवयित्री मीनाक्षी सिंह की "बातें जो कहीं नहीं गई" यथार्थ की चाशनी में लिपटा काव्य संग्रह है । आकर्षक मुखपृष्ठ, जिसे अंगिरा सिंह ने बनाया है ।
समर्पण में बहुत सुंदर पंक्तियां लिखी हैं ....कृपा माँ जगदंबे की और माँ सरस्वती का वरदान यही
अमर रहे आशीर्वाद उनका जीत तो तभी मिली।
मेरा पहला पन्ना उसकी कुछ पंक्तियां.….हम रोजाना नई सुबह की सूरज की करने का दिल खोलकर स्वागत करते हैं और पुराने नए अनुभवों के जरिए मिले शब्दों से आखिरकार कविता लिख देते हैं।
"कुछ लिखा हैआपके लिए" देखिए मीनाक्षी सिंह ने अपनी कविता संग्रह 'बातें जो कही नहीं गई' जिसे कहने का साहस कम लोग ही कर पाते हैं।इनकी कविताये ज़िंदगी का वह लिफ़ाफ़ा है जब आप पढेंगे तब आपको नया अनुभव होगा।
पुस्तक के अंतिम कर पृष्ठ पर कवयित्री का संक्षिप्त जीवन परिचय है ।कुल 38 रचनाओं को समेटे संग्रह की रचनाओं में शुरुआत 'बातें जो कहीं नहीं गई' से शुरू होकर 'कुछ छूट गया" पर जाकर समाप्त हुई।
भाई बहन शीर्षक रचना में परिवार की गरिमा और रिश्तो की आत्मीयता को असीम रूप से जोड़ने को चित्रित किया है ...माँ से उसकी शिकायत करने का पिता से उसी की शिकायत तो को छुपाने का। अन्य रचनाओं में दुआएं, जन्मदिन, वक्त, अंदाजा ही नहीं हुआ, जिंदगी, तुम खो गए, मंजिल से प्यारा रास्ता, इश्क, दर्द ए दिल, ढलती शाम, रेगिस्तान में सफर संवाद करती प्रतीत होती हैं।
एक प्याली चाय के कुछ अंश.....
एक प्यारी चाय ,
खुशी हो या गम ,
साथ देती है हरदम ,
चाय के साथ हमदम सा रिश्ता,
कभी हम टूटे ,
कभी वह बिखरा,
कभी प्याली टूटी
कभी चाय बिखरी
जिंदगी कम संवरी,
ज्यादा बिखरी!
माँ कविता में माँ के व्यक्तित्व का अकिंचन और उसका तो शब्दों से वर्णन भी परे- अवर्णनीय है। माँ का स्थान पिता का स्थान सभी रिश्तों से मेरी समझ में सबसे ऊपर और अपिरभाषित होता है, जैसा कि मीनाक्षी के शब्दों में झलकता है -
मंदिर में बजती घंटी सी वो
झील में बहते पानी सी वो
ठंडी हवाओं के झोंके सी वो
चंद्रमा सी शीतल सी वो ।
उलझी पहेली, ख्वाहिश, दिल्लगी, नादान यह दिल, मुक्ति, आराध्य, प्रार्थना, मुखौटा, आवारा दिल, दोस्त, कुछ छूट गया, सभी रचनाएं बहुत सुंदर हैं। रचनाओं के शीर्षक की जितनी तारीफ की जाए कम है। कविताओं के प्रवाह में तरलता है। कम शब्दों में सारगर्भित बात कही गई है। भाषा सरल, प्रभाव पूर्ण भावनाओं से भरी है। प्रेम, सौंदर्य, विरह जीवन के विभिन्न पहलुओं को लेकर लिखी गई कविताएं पाठकों को भावुक करने में सक्षम हैं।
मीनाक्षी सिंह को हार्दिक बधाई एवं मंगलमय शुभकामनाएँ। उनकी लेखनी निरंतर चलती रहे।और प्रस्तुत काव्य संग्रह नए आयाम गढ़े, ऐसी मेरी कामना है।
- डॉ पूर्णिमा पाण्डेय 'पूर्णा' प्रयागराज, उत्तर प्रदेश