जिंदगी का सफर - लालाराम फौजदार

कट रहा है बढिया जिन्दगी का सफ़र है
मिल गया है मुझे अच्छा हम सफ़र है
कlटों भरी राहों को भी बना दिया सुहानी डगर है।
कुल कुटुंब परिवार सब कुछ था मेरा,
लेकिन आने से उसके मेरा बस गया घर है!
ईंटों से मैंने मकान तो बना लिया,
आने से उसके मकान बन गया घर है
कहाँ हो कब आओगे हमेशा पूछती है
उसको तो मेरी चिंता इस कदर है
आखों से ओझल ना होने देती मुझको,
पल पल की रखती वो मेरी खबर है।
साथ तुम्हारा ना छोड़ कभी भी,
निभाऊँगी साथ तुम्हारा उम्र भर है
किराए पर कमरा ना मिलता था मुझको,
अब हर कोई मुझको दे देता घर है
आने से उसके मेरी बढ़ गयी कदर है
विश्वास उसने किया इतना मुझ पर,
मेरे लिए छोड़ आयी अपने बाबुल का घर है
हम भी कहाँ थे पीछे हटने वाले,
हमने भी सौंप दिया उन्हें अपना घर है
अब तक तो केवल वो पत्नि थी मेरी,
अब तो वो मेरे बच्चों की मदर है
उसके लिए तो मेँ कर दूँगा गदर है।
- कवि लालाराम फौजदार "लाला", डींग, राजस्थान