भग्न-हृदय  की  ज्वाला -  मीनू कौशिक

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भग्न-हृदय  की  ज्वाला  को , ऊर्जा  में  परिवर्तित  कर दे ,

नव-सृजन में हो संलग्न,कल्पना भावों से सज्जित कर दे ।

मत  देख  जगत की निष्ठुरता,मन  क्रंदन से  भर जाएगा ,

जो सृजन बीज मन बीच दबा ,वह तड़प-तड़प मर जाएगा ।

जिसने जो  भी कृत्य  किया ,एक दिन  हिसाब देना  होगा ,

तू नई डगर का पथिक तुझे,पग संभल-संभल धरना होगा ।

शाश्वत  सत्य  यह  सृष्टि का , मन  से जो सृष्टि बनाएगा ,

होगी एक दिन साकार रूप,शत-प्रतिशत श्रम जो लगाएगा ।

ये  कायनात  तेरे  सपनों  की,  खुद  ही  उत्तरदायी  होगी ,

शुभ भाव से बढ़ता जा पथ पर ,कर जोड़ खडी़ मंजिल होगी।

- मीनू कौशिक 'तेजस्विनी', दिल्ली