कहानी पिता की - सुनील गुप्ता

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 ( 1 )" कहानी ",

पिता की

न पढ़ाएं हमें...,

हमने पढ़ी है, झुर्रियाँ पिता की !!

( 2 )" पिता ",

कभी कुछ

न कहे हमें...,

और कह दे सब कुछ, बिना कहे  !!

( 3 )" की ",

किताब है

ये नायाब अनोखी...,

तमाम उम्र देखी, इसे समझी पढ़ी !!

( 4 )" हमें ",

पढ़ाओ न

रिश्तों की किताब...,

सदैव पढ़ी हैं, बाप की झुर्रियाँ !!

( 5 )" न ",

नगण्य मात्र

रहीं उनकी ज़रूरतें...,

सभी के लिए, वो रहे यहाँ पे जीते !!

( 6 )" पढ़ाएं "

न हमें

और कोई कहानी...,

हमने स्वयं जानी, पिता की ज़िंदगानी !!

- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान