गीत - झरना माथुर

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सावन में पीहर याद आए,

बाबुल का अंगना वो बुलाए।

बीता बचपन जिन चौवारों में,

यादों का बादल नैन भिगाए।

भाई बहनों संग  खेल खेले,

खुट्टी मिल्ला में दिन बिताए।

छत पे बारिश में  भीगना वो,

कागज़ की नौका मिल बहाए।

 वो बाते अब जाने कहा है,

 मिलने के दिन रैना न आए।

छूटा पीहर बंधी पिया के,

घर के अपने अब सब  पराए ।

- झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड