गीत (सिसकता किसान) - जसवीर सिंह हलधर
उत्तम खेती वाला जिसको ,मिला न एक निशान ।
अपना अन्न लिए बुग्गी में ,जाता दुखी किसान ।।
जोड़ रहा था रस्ते भर वो ,लगे फसल पर दाम ।
बीज खाद बिजली पानी पे ,खर्चा हुआ तमाम ।
ठीक भाव मिल जाय तो फिर ,चुकता करूँ लगान ।।
अपना अन्न लिए बुग्गी में ,जाता दुखी किसान ।।1
मंडी में जैसे ही पहुँचा , आये वहां दलाल ।
माल देख मुँह को पिचकाया , टेढ़े किये सवाल ।
भाव सुने तो रोना आया , टूटे स्वप्न मचान ।।
अपना अन्न लिए बुग्गी में ,जाता दुखी किसान ।।2
माल घटे दामों पर बेचा , होकर बहुत अधीर ।
सपने बेटी की शादी के ,प्रश्न बने गंभीर ।
कैसे कन्यादान करूँ अब , बेटी हुई जवान ।।
अपना अन्न लिए बुग्गी में , जाता दुखी किसान ।।3
कोई नहीं सोचता इस पर , सोयी है सरकार ।
एम एस पी कानून बने तो , होवे बेड़ा पार ।
ऐसा यदि हो जाएगा तो , होगा देश महान ।।
अपना अन्न लिए बुग्गी में ,जाता दुखी किसान ।।4
रोता धरती पूत खेत में ,सूख हुआ कंकाल ।
"हलधर" दबा कर्ज़ के नीचे , दल्ले मालामाल ।
आग लगे ऐसी खेती को , इससे भली दुकान ।।
आपना अन्न लिए बुग्गी में ,जाता दुखी किसान ।।5
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून