सपदान्त दोहे -- मधु शुक्ला

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समता का बन पक्षधर, यश पाता आदित्य।

कर्म प्रभा की रोशनी, बिखराता  आदित्य।।

लक्ष्य रखो जनहित हमें, यह कहता आदित्य।

कथनी,करनी मेल का, गुण रखता आदित्य।।

जिसने  भी  संसार  पर, नहीं  लुटाया  प्रेम।

दूर  रहा  उससे  सदा, निकट न आया प्रेम।।

सुख की परिभाषा नहीं, मन कर पाया ज्ञात।

जो कर  पाता  तो  उसे,  होती  माया  ज्ञात।।

-- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश