बरसती बूंदे - रेखा मित्तल

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आज फिर देख बरसती बूंदे

कुछ अनकहा सा याद आ गया

यह बारिश की बूंदे

यह बूंदों की बारिश !

मन‌ भीगे, तन भीगे

इस नेह की बारिश में सब भीगे

सौंधी मिट्टी की खुशबू बिखेरती

मन को रीता करती जाए।

दबा हुआ मन की तहों में

बारिश की बूंदों से बहता जाए

अंतर्मन को भिगोती बूंदे

याद किसी अपने की दिला जाए।

भीगी बारिश की रातों में

कुछ गीला हुआ है मेरा दिल

सीले-सीले से एहसास

अन्तर्मन की गहराइयों को छू रहे

कहना चाहती हूँ बहुत कुछ

पर शब्द अधरों पर रह जाए।

बिन कहे ही सब समझ आ रहा

आंसुओं का सैलाब बन बह रहा

कहने सुनने को अब बचा नहीं कुछ?

मन की भाषा मन ही समझ पाए !

- रेखा मित्तल, चंडीगढ़