तख्ती और स्लेट - रेखा मित्तल

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तख्ती और स्लेट

नाम सुनते ही याद आए

बचपन के वो दिन

जब लिखा करते थे स्लेट पर

तख्ती को रोज सुबह लीपते

धूप में फिर उसको सुखाते

कलम की रोज नोक बनाते

स्लेटी खाकर भूख भी मिटाते

तख्ती पर मिटाने का ऑप्शन ही नहीं था

इसलिए हमेशा सुलेख ही लिखते

अब न रही तख्ती, न रही स्लेट

सुंदर लेख ,सुलेख भी नहीं

रीत पुरानी हम सब भूल गए

जमाना आ गया जेल पेन का

अब टाइपिंग और कॉपी पेस्ट का

ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन

शायद हम लिखना ही न भूल जाए

अब समीकरण सारे बदल गए

आ गई है नए प्रकार की तख्ती

लिखो, लिखो इस पर खूब लिखो

सुलेख की तो कोई चिंता ही नहीं

और एक क्लिक पर सब मिटा भी दो

 ️ रेखा मित्तल, सेक्टर-43, चंडीगढ़