बुढ़ापा - सुनील गुप्ता

(1) " बु ", बुत से बने बैठे हो क्यों
इतना भी यहां पे विचार ना करो !
था अपना भी कभी अच्छा समय......,
बुढ़ापे की चिंता तनिक ना करो !!
(2) " ढ़ा ", 'ढाक के तीन पात' की तरह
समय एक सार नहीं रहता !
वक़्त बदल रहा, हम भी बदलें....,,
और शरीर सदैव एकसा कहां रहता !!
(3) " पा ", पास हमारे अनुभव की पूंजी
और जीवन के मधुर कड़वे सच हैं !
ताउम्र हमने जो भी सीखा....,
अब उसके बाँटने का वक्त है !!
(4) " बुढ़ापा ", बुढ़ापा जीवन का है परम शिखर
और पहुंचना यहां आनंद का सबब !
शैशवकाल से चरमोत्कर्ष का सफर...,
सदा दिए जाते हैं जीवन सबक !!
(5) " बुढ़ापा ", बुढ़ापा है जीवन की कटु सच्चाई
जीएं चलें आनंद मस्ती संग !
कभी किसी से करें ना शिकायत....,
और चलें बांटते जीवन आनंद अनुभव !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान