संगीत - सुनील गुप्ता

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है संगीत दिलों की भाषा

जिसे पूरी दुनिया है समझती !

किसी भी काल खंड देश में.......,

ये सभी के सिर चढ़के बोलती !!1!!

सुन संगीत की लयबद्ध ताल

सभी मंत्र मुग्ध हो जाएं !

है ये मन की वो सुन्दर भाषा......,

जो सभी के हृदय में रच-बस जाए !!2!!

है संगीत परम स्वर साधना

करनी पड़ती है रियाज़ निरंतर !

करते चले जो ये आराधना.....,

पाते हैं वो प्रभु का प्रसाद यहांपर  !!3!!

संगीत की मधुर स्वर लहरी पर

झूमें नाचे ये सारा तन मन  !

और हर्षाए चले जीवन प्रतिपल.....,

बनाए रखे ये ख़ुश मस्त प्रसन्न !!4!!

है संगीत प्रकृति का अहोभाव

जिसे अज़स्त्र निर्झर सदा सुनाएं !

कल-कल बहती नदिया सागर......,

जीवन को गति लय ताल दें जाएं !!5!!

है संगीत बिना ये जीवन सूना

और सूनी हैं इसकी यहां पे राहें !

जिसने सुना संगीत ह्रदय का.....,

उसकी जाग उठी जीवन संभावनाएं !!6!!

संगीत बसा हरेक श्वासों में

सुनें दिल की धड़कनों का गीत !

और रहा अनुगूँजता अंतर्मन में....,

बना संगीत हमारा सच्चा मीत !!7!!

बह रही हवा मंद-मंद यहांपर

और सुना रही प्रकृति का संगीत !

चहुँओर से उठ रही ओंकार ध्वनि.....,

जिसे सुन गाए तन मन यहां गीत  !!8!!

है संगीत ईश्वर की आराधना

और प्रकृति की पूजा वंदना अर्चना  !

आओ बनाएं इसे प्रिय मीत.....,

और करते चलें यहां नित साधना !!9!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान