मुक्तक (नेपाली) - दुर्गा किरण तिवारी
Oct 15, 2023, 23:38 IST
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टार्न गर्जो मेट्न भोक निवेकले मेलापातमा थाकेको छ ,
त्यसैले दिनदिनै अभावको खाली कसौंडीमा पाकेको छ,
भोकप्यासको बाध्यता र दु:खको पहाड के देख्नु उसका,
जसले सुख सयलमा मत्त हावाको रेलगाडी हाँकेको छ।
मुक्ति (हिंदी) -
भूख नीवेक थक गया है मेले से कलंकित गड़गड़ाहट को बुझाने के लिए,
इसलिए कसुंडी में रोज खाली कमी पकी जाती है,
भूख की मजबूरी और गम का पहाड़ क्या देखते हो,
सुख सायल में नशे में हवा के साथ ट्रेन चलाने वाले।
- दुर्गा किरण तिवारी, पोखरा,काठमांडू , नेपाल