मिज़ाहिया ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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चार बीवियां सोलह बच्चे हद कर दी ।

तन पर नहीं लंगोटी कच्छे हद कर दी ।

भारी पैर बताती है चौथी बीबी ,

झूम रहे सुन ताऊ चच्चे हद कर दी ।

दून सिटी स्मार्ट हो रहा सालों से ,

रोज नए बनते हैं खच्चे हद कर दी ।

वोटों के फल पके हुए हैं वादों से ,

मान रहे क्यों उनको कच्चे हद कर दी ।

शोर चुनावों का है अपनी दिल्ली में ,

नियमों के उड़ते परखच्चे हद कर दी ।

बच्चों की सौगंध उठाते नेता जी ,

झूठ बोलकर बनते सच्चे हद कर दी ।

चोर उचक्के लुट रहे हैं खातों को ,

घर बैठे खा जाते गच्चे हद कर दी ।

लूट लिया सम्मेलन एक हसीना ने ,

गीतों में लफ़्ज़ों के लच्छे हद कर दी ।

साल पुराना बीत गया है मस्ती में ,

पीकर विश्की 'हलधर' नच्चे हद कर दी ।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून