मन कानन के फूल - सुनील गुप्ता

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 ( 1 ) खिलाए

      चलें मन कानन के फूल,

      नित उठते ही, ब्रह्ममुहूर्त में रोज  !

      और खुशगवार बनाते मन दुनिया को...,

      चलें फैलाए, ज्ञान प्रकाश का ओज !!

( 2 ) महकाए

      चलें तन-मन की बगिया,

      रहें बाँटते प्रेम खुशियाँ अपार  !

      और मिले जो भी, उसे लगाएं गले...,

      चलें बनाए आनंदित, घर संसार !!

( 3 ) हर्षाए

      चलें झूमते मस्ती में गाते,

      श्रीप्रभु का यहाँ संकीर्तन करते  !

      और प्रभु कृतज्ञताओं का रखते भाव..,

      चलें करते श्रीहरिदर्शन मन को लुभाते !!

( 4 ) सरसाए

      चलें प्रेम मधु मकरंद लुटाते,

      अपने मन कानन के चहुँओर  !

      और जोश उमंग उत्साह संग बढ़ते..,

      चलें तय करते, मंज़िल को पार !!

( 5 ) मुस्कुराए

      चलें सदैव कदम आगे बढ़ाते,

      श्रीप्रभु चलेंगे संग-साथ तुम्हारे  !

      और खिलती चलेगी ये जीवन बगिया.,

      चलें साकार होते, सभी सपने सुनहरे !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान