आदमी छला गया - अनिरुद्ध कुमार
Jan 20, 2025, 23:31 IST
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चलपड़ा कारवाँ किधर, कौन सी नयी डगर।
राह भी अंजान लगे, हो रहा अगर मगर।।
लग रहा बेजान सभी, झेलें परेशनियां।
भूल गये राह अपनी, बोलती निशानियाँ।।
रातो-दिन का फासला, लाखों मजबूरियाँ।
चेहरा उड़ा उड़ा सा, नाप रहे दूरियाँ।
हौसला भी पस्त लगे, कौन जानता इन्हें
चाहता सहारा मिलें, राहमें खड़ें तनें।
हालचाल कौन जाने, कौन पूछता यहाँ।
निष्ठुरता अब चरम पे, आदमी छला गया।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड