गीत - जसवीर सिंह हलधर

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मुक्त कविता के समय में !

लिख रहा हूँ गीत लय में !!

देख कर ये हठ अनौखी ,

हँस रहे कुछ बुद्धि जीवी !

कह रहे मुझको अनाड़ी ,

लोक गायन का करीबी !

वो हमारे खास चिंतक ,

क्या कहें उनके विषय में !

मुक्त कविता के समय में !!1

कौन देता सरल वाणी ,

नित्य नित होती व्यथा को !

मुक्त कविता कर न पाती,

तरल नारायण कथा को !

हो न पाता भेद कायम ,

वासना में या प्रणय में !

मुक्त कविता के समय में !!2

ईश के हम अंश होकर ,

ध्वंश पथ पर खो गए हैं !

सोम के रस पान वाले ,

छंद गायब हो गए हैं !

मुक्त तारे भी नहीं हैं ,

व्योम गंगा के निलय में !

मुक्त कविता के समय में !!3

गुम हुआ साहित्य से अब ,

ज्ञान पिंगल देवता का !

कौन जाने किस कसौटी ,

हो चयन कविता कता का !

ध्यान में भी नाद उगते ,

नाथ हैं "हलधर "हृदय में !

 मुक्त कविता के समय में !!4

 - जसवीर सिंह हलधर , देहरादून