गीत - जसवीर सिंह हलधर
न्यायधीश ही अगर देश में ,पक्ष पात की बात करेंगे ।
संविधान में समता मूलक, भाव कहां तक रह पाएंगे ।।
वातावरण आज भारत का, वर्ग भेद से भरा हुआ है ।
मज़हब के ठेकेदारों से, संविधान भी डरा हुआ है ।।
चीन ,पाक के अय्यियारों के, स्वर संसद तक पहुंच चुके हैं ,
भारत में बटवारे वाला , घाव पुराना हरा हुआ है ।।
भृष्टाचार जनित दीमक ने, क्षीण करी पतवार हमारी ।
बीच सिंधु में फसी हुई जो , नाव कहां तक गह पाएंगे।।1
यह तो अपनी अपनी किस्मत, कौन कहां पैदा होता है ।
फूलों को संज्ञान नहीं है, क्या उपवन, सैदा होता है ।।
आरक्षण की राजनीति ने ,प्रश्न अनौखे खड़े किए हैं ,
गेहूं का दाना क्या जाने, क्या आटा मैदा होता है ।।
भूख गरीबी बीमारी क्या , जाति देखकर आते जाते ।
स्वर्ण जातियों के कंधे यह दाब कहां तक सह पाएंगे ।।2
पौधों पौंधों में अंतर क्या, कोई भी माली करता है ।
एक साथ बीज बोता वो,साथ खेत खाली करता है ।।
सबको अवसर देता है वो, बढ़ने और फूल फलने का ,
एक समान खाद पानी दे ,सबकी रखवाली करता है ।।
भेदभाव की खाद दवाई ,माली यदि उपवन को देगा ।
उच्च नस्ल के पौधे भी तब, ताव कहां तक दह पाएंगे।।3
कवियों को मत गाली देना ,जो देखेंगे वो गाएंगे।
दर्पण भांति लोकशाही की,असली सूरत दिखलाएंगे ।।
बाण सरीखे छंद हमारे ,चोट करेंगे भृष्ट तंत्र पर,
आंखों में लाली आयेगी ,कुछ को आंसू भी आएंगे।।
"हलधर "अगर देश की संसद,गूंगी बहरी हो जायेगी ।
संविधान में संशोधन के, घाव कहां तक कह पाएंगे ।।4
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून