गीत - जसवीर सिंह हलधर

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संबंधी या मित्र मंडली इतना  फ़र्ज़ निभाना होगा ।

प्राण पखेरू उड़ जायें जब अच्छी तरह विदा कर देना ।।

सेवा खूब करी अपनों की जब तक सांसें रही देह में ।

जीवन भर ही करी चाकरी खूब लुटाया माल नेह में ।

तोते का संदेशा मिलकर मैना को समझाना होगा ,

जीवन शेष चैन से जीना उसको नहीं जुदा कर देना ।।

प्राण पखेरू उड़ जाएं जब अच्छी तरह विदा कर देना ।।1

खूब तपाया इस काया को पीतल नहीं रही ये काया ।

अंगारों के साथ रहा हूँ स्वर्ण भांति यह गात तपाया ।

यादें ताजा रहें जगत में ऐसा मंच सजाना होगा ,

कविताओं के प्रकाशन में अपना फ़र्ज़ अदा कर देना ।।

प्राण पखेरू उड़ जाएं जब अच्छी तरह विदा कर देना ।।2

सारी रचना लोक समर्पित जो मैंने इस जग से पायीं ।

जैसे घने वृक्ष की शाखा धरती पर छोड़ें पारछायीं ।

बेशक देह जले मेरी पर मेरा लिखा बचाना होगा ,

भटके हुए पिपासित मन को इतना ध्यान सदा कर देना ।।

प्राण पखेरू उड़ जाएं जब अच्छी तरह विदा कर देना ।।3

कविता मेरी अमर बेल है कर मत देना भूल भुलावा ।

बच्चों और काव्य मित्रों पर इतना तो बनता है दावा ।

एक अमर सैनिक के जैसा मुझको वस्त्र उड़ाना होगा ,

"हलधर" को कवि रहने देना मुझको नहीं खुदा कर देना ।।

प्राण पखेरु उड़ जाएं जब अच्छी तरह विदा कर देना ।।4

जसवीर सिंह हलधर , देहरादून