काँटों पर नित चलो - प्रियंका सौरभ

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अगर चाहो तुम सूरज बनना,

बनकर के दीप जलो।

गर खिलना है फूलों-सा,

काँटों पर नित चलो॥

जीवन के इस सफ़र में,

न जाने कितने मोड़ मिलेंगे।

पग-पग मुश्किल रस्ता रोकेगी,

कष्टों के झकझोर मिलेंगे॥

यदि मंज़िल को है चूमना,

ना बाधा देख डरो।

गर खिलना है फूलों-सा,

काँटों पर नित चलो॥

फूलों का 'सौरभ' पाने हेतु,

काँटों को प्रथम चुनना होगा।

न जाने कितनी बार गिरोगे,

हर बार तुम्हें संभलना होगा॥

पड़े यदि सागर लांघना,

बन के पवन कुमार उड़ो।

गर खिलना है फूलों-सा,

काँटों पर नित चलो॥

बढ़ते कदमों को फांसने,

नियति अपना खेल रचेगी।

जीवन के इस महाभारत में,

बाधाएँ चक्रव्यूह रचेगी॥

होना चाहो अमर यदि तो

अभिमन्यु-सा वीर बनो।

गर खिलना है फूलों-सा,

काँटों पर नित चलो॥

मन-वचन-कर्म से तुमको,

ये युद्ध लडऩा होगा।

लहराते विजय पताका,

लक्ष्य की ओर बढऩा होगा॥

दुनिया जय-जय कार करेगी,

उन्नति के शिखर चढ़ो।

गर खिलना है फूलों-सा,

काँटों पर नित चलो॥

प्रियंका सौरभ, 333, परी वाटिका,

कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा