कविता - जसवीर सिंह हलधर
खोलो सब अपने नैन अबोध अभागो ।
जागो मेरे भोले किसान अब जागो ।।
परिवार वाद का ढांचा है फौलादी ।
यदि ना तोड़ा तो खतरे में आज़ादी ।।
जो सत्य जानकर सत्य नहीं कहते हैं ।
सत्ता की खातिर मूक बने रहते हैं ।।
ये राजनीति के गठबंधन वाले हैं ।
सिंहासन को आतुर जीजा साले हैं।।
जो लगे हिलाने पांव जमे अंगद का ।
कारक हैं वो खेती में पले विपद का ।।
ये पाप उन्हीं का हमको मार रहा है ।
खेती घाटे का कारोबार रहा है ।।
ये प्रदर्शन में जो नेता दिखते हैं ।
ये सब दरबारों में जाकर बिकते हैं ।।
असली किसान तो खेतों में बैठा है ।
नकली वाला चेनल पर जा ऐंठा है ।।
कानून ठीक था सत्य धर्म पालक था ।
भृष्टाचारी का नाश लोभ सालक था ।।
कानून नहीं यह भेद हमें मारेगा ।
जीतेगा आढ़त राज कृषक हारेगा ।।
अब तक जो पीछे ठेल रहे प्रतिभा को ।
बढ़ते भारत की तेज विकास विभा को ।।
हो जहां कहीं भी भृष्ट उन्हें टोको अब ।
दल्ले नेता बन रहे इन्हें रोको सब ।।
अब सूझ बूझ से रहना मेरे भाई ।
आ घुसे यूनियन में भी आताताई ।।
पहचानो पीली पाग छोड़कर संशय ।
खालिस्तानी मक्कार घूमते निर्भय ।।
कविता "हलधर "कड़वी है सच दर्पण है ।
दिनकर हैं मेरे देव उन्हें अर्पण है ।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून