ग़ज़ल हिंदी - जसवीर सिंह हलधर
Jul 15, 2023, 09:30 IST
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सभ्यता लौटी नहीं अब तक फिरंगी झील से ।
हंस भी डरने लगे अब मज़हबी इस चील से ।
कल गरीबी पर बहुत चर्चा हुई दरबार में ,
भुखमरी रोती रही यह देख कर सौ मील से ।
मानसूनी सत्र को हम देखने संसद गए ,
ख़ास मुद्दों पर सदन मजबूर था तामील से ।
दूध की नदियां बहाने की कसम खाते रहे ,
जंगलों से मुर्गियां भी छीन लाये भील से ।
देख लो बंगाल के हालात कैसे हो गए ,
जुर्म भाषण दे रहा कानून का तहसील से ।
संगठित होने लगे कुछ दल चुनावों के लिए ,
रोशनी गायब दिखी इस कागज़ी कंदील से ।
यज्ञ की बेदी नहीं बारूद का घर मानिए ,
लग न जाये आग ये थोड़ी हमारी ढील से ।
मूल में आतंक के इस्लाम ही क्यों लिप्त है ,
आयतें पढ़ लो जरा कुर-आन की तफ़सील से ।
रोज "हलधर" बोलता है तथ्य को भी तोल लो,
नागरिक कानून की तख्ती ठुके सम कील से ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून