हिंदी की व्यथा - सविता सिंह

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सखि री मेरा दर्द न जाने कोय

हिन्दी-हिन्दी  सब रटे

करे इंग्लिश में बात,

राष्ट्र भाषा का दर्जा मिले

पर करते हैं आघात।

हिन्दी को बस न्याय  मिले

और अंग्रेजी में आवेदन,

स्वयं में ढ़ालो हमें प्रथम

झांकों  अपने अंतर्मन। 

हिन्दी  है माथे की बिंदी

पंक्तियाँ चंद ये चुनिंदी, 

सम्मानित बस ऐसे कर लो

कण-कण जन-जन बोले हिंदी।

मेरा प्रिये क्यों एक दिवस?

न हो वादों से टस से मस,

हिन्दी सारे हिन्द की भाषा

प्रण करो ये बाँहे कस।

- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर