ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Mar 4, 2025, 23:55 IST
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मिले जिंदगी अब सँवरने लगी है,
तुम्हारी ये खुशबू बिखरने लगी है।
कहीं भी रहूँ मैं ये तन्हाई सहती,
शमा तेरी यादों की जलने लगी है।
जुदाई तुम्हारी ये डसने लगी है,
सितम जिन्दगी हम पे करने लगी है।
पुराने हुए पेड़ जितने थे इस में,
जवानी गुलिस्तां की ढलने लगी है।
दिखी आज चाहत भी तेरी ऩज़र मे,
मिलो यार चाहत मचलने लगी है।
नजर जब से ठहरी है जाकर के तुझ पर,
कोई आरजू दिल मे पलने लगी है।
ये सच है कभी जो दिवानी थी तेरी,
वो अब गिरते-गिरते सम्भलने लगी है।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़