ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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सदा खोये हैं यादो मे,ठिकाना भूल जाते हैं,

कहे तुमसे भी अब कैसे,बताना भूल जाते हैं।

तुम्हारे सामने सारा जमाना भूल जाते हैं,

हुई है आशिकी तुमसे बताना भूल जाते है।

शजर करता सदा सेवा,सदा सोचे भलाई भी,

अदब से सर ये बच्चे क्यो झुकाना भूल जाते हैं।

ऩजर को अब झुका बैठे, चले आये पनाहो मे,

घिरे है बस मुहब्बत से मुस्काना भूल जाते हैं।

नजर से जब नजर मिलती,हुआ नजरो का फिर जादू,

तुम्हें पाकर खुशी से हम जमाना भूल जाते हैं।

सुबह में देर से उठते हैं ये आराम की खातिर,

तो सूरज को भी अक्सर जल चढ़ाना भूल जाते हैं।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़