ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Jan 24, 2025, 22:54 IST
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खुदा से हमे अब शिकायत नही है,
सिवा तेरे कुछ भी जरूरत नहीं है।
मुझे प्यार अब उसका भी झुलसा रहा है,
उसे दर्द से मेरे मतलब नहीं है ।
निभाऊँ मैं कैसे ये रस्में-मुहब्बत,
उन्हे ही जो मुझसे मुहब्बत नही है।
हैं हम मुंतजिर उनका मैसेज आए,
उन्हें बात करने की फुरसत नहीं है।
किया प्यार तुमसे तो नफरत नही है,
मुहब्बत किसी की रियासत नही है।
है तेरी मुहब्बत इबादत है मेरी,
किसी और की अब जरूरत नही है।
उन्हे आज पूजा, बड़ा आज दिल से,
मगर फिर भी रिश्ते, सलामत नही है।
भले खुशनुमा हो न जीवन हमारा,
जमाने से फिर भी अदावत नही है।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़