ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Jan 1, 2025, 23:28 IST
| ढूँढती अपनो को सौदागर मिले,
इश्क के बीमार अब घर घर मिले।
काश तुमको अब कुई रहबर मिले,
नेकियाँ कर ले दुआ अकसर मिले।
उड़ गये थे जो खिजा मे रूठकर,
लौट कर आये तो उनको पर मिले।
झील मे बैठा तो चेहरा आब सा,
आब देखा तो हमे पत्थर मिले।
कर न पाये कुछ भी सबसे ओ खुदा,
आज उनके ही यहां पर दर मिले।
रब से डरते ऋतु भी ऐसे लोग है,
देख उसको ही झुकाते सर मिले।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़