ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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तेरी चिठ्ठी जो किताबों मे छुपा रक्खी है,

हाय कैसे मैं दिखाऊँ दिल लुटा रक्खी है।

दर्द मेरा बढ गया,बाहर निकालो यार तुम,

अब सुकूँ आये मेरे दिल की कामना रक्खी है।

जब मिले फुरसत तुम्हें फिर याद हमको कीजिए,

तू छिपा है दिल मे सबसे ये छुपा रक्खी है।

दर्द कैसे दूर होगा,जख्म दिल मे आ गये,

हाय कुछ सोचा नही, मरना बचा रक्खी है।

लिख रही थी कब से मन की डायरी के पेज पर,

जिंदगी मे शायरी हो बस बस भावना रक्खी है।

- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़