ग़ज़ल - रीता गुलाटी
Updated: Dec 10, 2024, 23:25 IST
| यार कब समझा हमारी पीर को,
आज भूला है तू अपनी हीर को।
मत निहारो तुम मेरी तस्वीर को,
आज देखा ख्याब मे ताबीर को।
खूबसूरत शायरी को जो लिखा,
मोतियों सी देख लो तहरीर को।
काम मन से तुम कभी करते नही,
कोसते रहते हो तुम तकदीर को।
प्यार हमसे है किया तो मिल हमें,
तोड़ कर आ शर्म की जंजीर को।
भूल बैठे अब अदब करना भी सुत,
हक जताते बाप की जागीर को।
शायरी लिखते बड़ी कठिन वो,
हम न समझे शायरी अब मीर को।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़