ग़ज़ल - ज्योति अरुण
Sat, 25 Feb 2023
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मिलता सदा मुहोब्बत ईश्वर के नेमतों से,
सुंदर सा आशियाना आबाद धड़कनों से ।
शरमा के मुस्कुराईं तेरी ही शरारतों से,
ईर्ष्या करें वो चंदा देखे जो बादलों से।
दिल जो सदा पुकारे बैरी सजन हुए क्यों,
तन्हां हुई ये रातें बीती जो सिसकियों से।
निश्लछ सा प्रेम मेरा तेरी हूं मैं दिवानी,
मीरा हूं तेरी कान्हा तेरी ही रहमतों से।
कैसे जहां में देखो दुश्मन बने हैं अपने,
रक्षा करें खुदा भी नफरत की बिजलियों से।
सुंदर जहां हमारा खिलती है फूल कलियां,
गुलजार अब रहें ये बागों के परिंदों से।
डरना नहीं कभी तुम यें "ज्योति" कह रही है,
मंजिल तभी मिलेगी रख मन को हौसलों से ।
- ज्योति अरुण श्रीवास्तव, नोएडा, उत्तर प्रदेश