ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर

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पहाड़ी चीरकर जिसने नदी झरने निकाले हैं ।

उसी ने अश्व भेजे हैं उसी के हम रिसाले हैं ।

उसी के पास है सब कुछ हमारे पास में क्या है ,

उसी के पास चाबी है उसी के पास ताले हैं ।

चुनौती दे है आदमी उसकी करामत को ,

बनाए सेतु सागर पर किए करतब निराले हैं ।

वहीं राजा बनाता है वहीं वैराग्य देता है ,

बिना उसकी इजाज़त के नहीं मिलते निवाले हैं ।

फरिश्ता बन गया इंसान जब उसने शिफा बख़्शी,

उसी ने राजगद्दी से बहुत से नृप उछाले हैं ।

वही पालक है दुनिया का वही चालक है दुनिया का ,

समंदर चांद सूरज व्योम सब उसके हवाले हैं ।

मगर इंसान की फ़ितरत भी उससे कम नहीं 'हलधर',

धरा, आकाश, सागर, राज़ जिसने खोज डाले हैं ।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून