ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Jan 18, 2025, 22:45 IST
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खेत के कानून का अब हल निकलना चाहिए ।
टहनियां तोड़े बिना ही फल निकलना चाहिए ।
राजधानी घिर चुकी अलगाव के अंगार में ,
आग का करने शमन दमकल निकलना चाहिए ।
बैठ कर चर्चा करो अपनी कहो उनकी सुनो ,
पाटकर खाई हमें समतल निकलना चाहिए ।
कूप की बुनियाद में ही आब की तासीर है ,
जांच कर देखो वहीं पर जल निकलना चाहिए ।
कुछ विदेशी वामपंथी कर रहे दूषित हवा ,
राजधानी साफ हो ये मल निकलना चाहिए ।
शीत के आगोश में आने लगा है कारवां ,
न्याय के मंदिर से अब कम्बल निकलना चाहिए ।
जो किसानों के मसीहा दिख रहे "हलधर" यहां ,
इन दलालों का हवा में छल निकलना चाहिए ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून