ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर 

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सर जहां पर था हमारा पैर कर आए हैं हम ।

मुल्क बटवारे में अपने गैर कर आए हैं हम ।

आब सतलज और रावी का अभी तक लाल है ,

खून की बहती नदी में तैर कर आए हैं हम ।

तीन रंगों में छिपा इतिहास भी भूगोल भी ,

सिंध से लाहौर से भी बैर कर आए हैं हम ।

हूण,ठाकुर,जाट हैं हम या मुगल, मंगोल हैं ,

दासता पिछली सदी में सैर कर आए हैं हम ।

जो गए वो भी मुहाजिर हो गए हैं पाक में ,

पांच नदियों का बगीचा कैर कर आए हैं हम ।

देश बटवारा हुआ तो हिंदुओं को क्या मिला ,

बाग"हलधर"आम वाला खैर कर आए हैं हम ।

 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून