ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Dec 11, 2024, 23:25 IST
| सर जहां पर था हमारा पैर कर आए हैं हम ।
मुल्क बटवारे में अपने गैर कर आए हैं हम ।
आब सतलज और रावी का अभी तक लाल है ,
खून की बहती नदी में तैर कर आए हैं हम ।
तीन रंगों में छिपा इतिहास भी भूगोल भी ,
सिंध से लाहौर से भी बैर कर आए हैं हम ।
हूण,ठाकुर,जाट हैं हम या मुगल, मंगोल हैं ,
दासता पिछली सदी में सैर कर आए हैं हम ।
जो गए वो भी मुहाजिर हो गए हैं पाक में ,
पांच नदियों का बगीचा कैर कर आए हैं हम ।
देश बटवारा हुआ तो हिंदुओं को क्या मिला ,
बाग"हलधर"आम वाला खैर कर आए हैं हम ।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून