ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

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दौलत समेंटने की सदा हो रहे हैं वो ।

इस दौरे सियासत के हुदा हो रहे हैं वो ।

इंसानियत को मार के ऐसा शिला मिला ,

दर्पण समक्ष खौफ़ज़दा हो रहे हैं वो ।

होता नहीं यकीन तो मत कीजिए जनाब ,

जब से हुए अमीर खुदा हो रहे हैं वो ।

मिलते थे रोज रोज चाय की दुकान पर,

मदहोश हैं मयनोश कदा हो रहे हैं वो ।

चश्मा बता रहा है कि ताज़ा रईस हैं ,

धनवान शख्सियत की अदा हो रहे हैं वो ।

जिनकी नियाज़ से वो बड़े आदमी बने ,

उनसे ही दूर आज जुदा हो रहे हैं वो ।

'हलधर' गुनाह कर दिया तीखी कही ग़ज़ल ,

रुसवाइयों का यान लदा हो रहे हैं वो ।

 – जसवीर सिंह हलधर, देहरादून