ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर
Aug 21, 2024, 23:05 IST
| दौलत समेंटने की सदा हो रहे हैं वो ।
इस दौरे सियासत के हुदा हो रहे हैं वो ।
इंसानियत को मार के ऐसा शिला मिला ,
दर्पण समक्ष खौफ़ज़दा हो रहे हैं वो ।
होता नहीं यकीन तो मत कीजिए जनाब ,
जब से हुए अमीर खुदा हो रहे हैं वो ।
मिलते थे रोज रोज चाय की दुकान पर,
मदहोश हैं मयनोश कदा हो रहे हैं वो ।
चश्मा बता रहा है कि ताज़ा रईस हैं ,
धनवान शख्सियत की अदा हो रहे हैं वो ।
जिनकी नियाज़ से वो बड़े आदमी बने ,
उनसे ही दूर आज जुदा हो रहे हैं वो ।
'हलधर' गुनाह कर दिया तीखी कही ग़ज़ल ,
रुसवाइयों का यान लदा हो रहे हैं वो ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून