गीतिका - मधु शुक्ला

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दीप मन का कभी तो जलाया करो,

सोच को नित्य दर्पण दिखाया करो।

चाटुकारी न उज्जवल करेगी हृदय,

कुछ समय‌ निंदकों में बिताया करो।

ज्ञान का घट कभी पूर्ण भरता नहीं,

गुरु चरण में सदा सिर झुकाया करो।

हैं विधाएं बहुत लेखनी के लिए,

नव सृजन को सखा आजमाया करो।

हो न सामर्थ्य तो मत वचन दीजिए,

दाग छवि पर न 'मधु' तुम लगाया करो।

---  मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश