गीतिका - मधु शुक्ला

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चाहता है जो हृदय वह कह न पाता,

स्वप्न नगरी के तभी नजदीक जाता।

कामनाओं की पिटारी खोलने को,

धुंध फैली वर्जनाओं की हटाता।

लालसायें व्यक्ति को कमजोर करतीं,

यह हमें अवसाद का दामन बताता।

जब रहे अधिकार से वंचित प्रणय तब,

प्यास अपनी स्वप्न के द्वारा बुझाता।

दे अगर सम्मान प्रिय तजकर अहम् को,

मान पाये तब नहीं यह स्वप्न नाता।

--- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश