गीतिका - मधु शुक्ला

 | 
pic

सफाई ने किया हैरान जब दीपावली आई ,

चमकने घर लगा लेकिन बदन पर मु्र्दिनी छाई।

मिठाई, वस्त्र, पूजन का सभी सामान लाना है,

बजट लख कर सफाई का हमारी जेब चिल्लाई।

पटाखे,फुलझड़ी, दीपक लगे कहने सभी हमसे,

हमें मत भूल जाना जी कहीं तुम देख मॅ॑हगाई।

घटी जब कद्र मोबाइल सफाई ‌की वजह से तो,

कली कविता बिना पोषण हुई बैचैन मुरझाई।

तजो अब ये सफाई तुम कलम बोली मृदुल स्वर में ,

सफाई अवगुणों की मातु लक्ष्मी को अधिक भाई ।

 --- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश