वहीं खड़ी है द्रौपदी - प्रियंका सौरभ

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चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन।

प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वह कौन॥

राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार।

घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार॥

कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करें सियार।

जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार॥

बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर।

पल-पल लुटती बेटियाँ, कैसा कलयुग घोर॥

वक्त बदलता दे रहा, कैसे-कैसे घाव।

माली बाग़ उजाड़ते, मांझी खोये नाव॥

नज़र झुकाये लड़कियाँ, रहती क्यों बेचैन।

उड़ती नींदें रात की, मिले न दिन में चैन॥

मछली जैसे हो गई, अब लड़की की पीर।

बाहर सांसों की पड़ी, घर में दिखे अधीर॥

लुटती हर पल द्रौपदी, जगह-जगह पर आज।

दुश्शासन नित बढ़ रहे, दिखे नहीं ब्रजराज॥

घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस।

बहू-बेटियाँ झेलती, नित शैतानी दंश॥

वहीं खड़ी है द्रौपदी और बढ़ी है पीर।

दरबारी सब मूक हैं, कौन बचाये चीर॥

छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव।

बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव॥

-प्रियंका सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा) -127045