महकें हर नवभोर पर - डॉ. सत्यवान सौरभ

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बने विजेता वह सदा, ऐसा मुझे यक़ीन।

आँखों में आकाश हो, पांवों तले ज़मीन॥

तू भी पायेगा कभी, फूलों की सौगात।

धुन अपनी मत छोड़ना, सुधरेंगे हालात॥

बीते कल को भूलकर, चुग डालें सब शूल।

महकें हर नवभोर पर, सुंदर-सुरभित फूल॥

तूफानों से मत डरो, कर लो पैनी धार।

नाविक बैठे घाट पर, कब उतरें हैं पार॥

 

छाले पांवों में पड़े, मान न लेना हार।

काँटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार॥

 

भँवर सभी जो भूलकर, ले ताकत पहचान।

पार करे मझधार  वो, सपनों का जलयान॥

तरकश में हो हौंसला, कोशिश के हो तीर।

साथ जुड़ी उम्मीद हो, दे पर्वत को चीर॥

नए दौर में हम करें, फिर से नया प्रयास।

शब्द क़लम से जो लिखें, बन जाये इतिहास॥

आसमान को चीरकर, भरते वही उड़ान।

जवां हौसलों में सदा, होती जिनके जान॥

उठो चलो, आगे बढ़ो, भूलो दुःख की बात।

आशाओं के रंग से, भर लो फिर ज़ज़्बात॥

छोड़े राह पहाड़ भी, नदियाँ मोड़ें धार।

छू लेती आकाश को, मन से उठी हुँकार॥

हँसकर सहते जो सदा, हर मौसम की मार।

उड़े वही आकाश में, अपने पंख पसार॥

हँसकर साथी गाइये, जीवन का ये गीत।

दुःख सरगम-सा जब लगे, मानो अपनी जीत॥

सुख-दुःख जीवन की रही, बहुत पुरानी रीत।

जी लें, जी भर जिंदगी, हार मिले या जीत॥

खुद से ही कोई यहाँ, बनता नहीं कबीर।

सहनी पड़ती हैं उसे, जाने कितनी पीर॥

-डॉ. सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045