मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक
Sun, 19 Mar 2023
| 
विजयिनी निज कर्म में डटकर जुटी थी,
लेश भर भी दीनता न छू सकी थी,
तन की अक्षमता रुकावट कैसे बनती,
लक्ष्य बेधन की लगन मन में लगी थी।
मुख पे उसके तेज औरों से अधिक था,
जीत का विश्वास आंखों में भरा था,
काश! उसको मैं बता पाती कि उसमें,
खास था कुछ, जो कि औरों में नहीं था।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड