बसन्त - डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक

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फ़रवरी की धूप में

सीढ़ियों पर बैठ कर

शरद और ग्रीष्म ऋतु के

मध्य पुल बनाती धूप के नाम

लिख रही हूँ 'पाती'

आँगन के फूलों पर

मंडराती तितलियाँ ,

पराग ढूँढती मधुमक्खियाँ,

गुंजायमान करते भँवरे

मन को कर रहे हैं पुलकित

हे प्रकृति!

यूँ ही रखना

यह मन का आँगन आनंदित

सुरभित, सुगन्धित

मधुमासी हवा का झोंका

गा रहा है बाँसुरी की तरह

हृदय की बेला खिल रही है

पांखुरी की तरह

उदासी भरे पतझड़ का

हो रहा है अन्त

फूट रही हैं कोपलें

उन्माद भरा

महक उठा है बसन्त

बसन्त केवल

ऋतु नहीं

परिवर्तन भी है

बसन्त केवल

ऋतु नहीं

प्रकृति का

अभिनंदन भी है ।

- डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक, लुधियाना, पंजाब