छंद (साहित्य सदन) - जसवीर सिंह हलधर

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गंगा और जमुनी तो , तहज़ीब डूब गई ,

कोई बतलाए किस नदी में नहाएं अब ।

गीत और गज़लें भी , मज़हबी होने लगे ,

आप ही बताओ कैसी, कविता सुनाएं अब ।।

अच्छे और सच्चे कवि, मंच को तरस रहे ,

कैसे इन कवियों को मंच पढ़वाएं अब ।

धाएं धाएं जल रहा, साहित्य सदन आज ,

युक्तियां सुझाओ कैसे आग ये बुझाएं अब ।।

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून