छंद (साहित्य सदन) - जसवीर सिंह हलधर
Oct 16, 2024, 23:41 IST
| गंगा और जमुनी तो , तहज़ीब डूब गई ,
कोई बतलाए किस नदी में नहाएं अब ।
गीत और गज़लें भी , मज़हबी होने लगे ,
आप ही बताओ कैसी, कविता सुनाएं अब ।।
अच्छे और सच्चे कवि, मंच को तरस रहे ,
कैसे इन कवियों को मंच पढ़वाएं अब ।
धाएं धाएं जल रहा, साहित्य सदन आज ,
युक्तियां सुझाओ कैसे आग ये बुझाएं अब ।।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून