बिछोह - जितेंद्र कुमार

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न समझ कर समझ समझा दिया उसने,

ह्रदय-लोचन से अश्रु-नृत्य करा दिया उसने l

ह्रदय-चक्षु से प्रलय गीत गा रहें है हम,

मुकुल- पुहूप से मुरझा रहें है हम l

अपलक अक्षि मे अपार अवसाद, दग्ध,

उर विप्लव प्लावित हो रहें है l

           

वक्षस्थल-चक्षु से कर रहें है पश्चाताप,

हो गया जो आज मुझसे एक और पाप l

पर लग गये थे जो उड़ रहें थे साथ-साथ,

उनके ह्रदय-नेत्र मे चुभने लगी आज मेरी बात l

- जितेंद्र कुमार, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश