छेरछेरा - अशोक यादव

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झटकुन सूपा म, धान देदे, झन कर तंय बेरा।

माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।।

ए ओ नोनी, फईका ल खोल दे।

देबे के नहीं तेला बोल दे।।

कोठी ल झाँक ले। मोर मन ल भाँप ले।।

काठा-पैली भर हेर-हेरा।

माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।।

बड़े बिहनिया ले लईका मन आए।

जाके घरों-घर सबला जगाए।।

होगे हवन जइसे बगरे पैरा।

माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।।

एक खोंची, दू खोंची देदे मोला।

सबे घर जाए के का मतलब मोला।।

मन के बात बताहूँ, तोर मेरा।

माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।।

मुँह ल सुघ्घर तंय धोले। रात के बासी ल पोले।।

मोला भीतरी कोती बला ले। तोर कोठी म मोला चघा ले।।

जादा लालच नइहे, मोला थोरा।

माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।।

- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़