जीत के आना है - अशोक यादव

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कर्मवीर मेहनत कर, मंजिल तक तुझे जाना है।

इस बार हार को हराकर, जीतकर तुझे आना है।।

अभी तो एक बार हारा है, कुछ कमी रही होगी।

टूटा सुनहरा स्वप्न, दोनों आँखों में नमी रही होगी।।

जिद्दी बन जा, जंग मैदान को छोड़कर मत भाग।

सफलता प्राप्त करने की, मन में लगी है आग।।

नामुमकिन को मुमकिन, तुझे करके दिखाना है।

इस बार हार को हराकर, जीतकर तुझे आना है।

दो नावों में पैर मत रख, जलभंवर में डूब जायेगा।

फिर से तू हारा हुआ एक खिलाड़ी कहलायेगा।।

लोगों के नजरों में एक मजाक बन रह जायेगा।

यदि मंजिल में जीत की परचम नहीं लहरायेगा।।

कुद दो अथाह समुद्र में, तुझे मोती लेकर आना है।

इस बार हार को हराकर, जीतकर तुझे आना है।।

निराश होकर बैठा है बुजदिल, खुद से रूठे हुए।

हार का मना रहा है मातम, जैसे आत्मा लुटे हुए।।

उठ! जाग! आँखें खोल, विदुषी पुस्तक बुलाती है।

पढ़ो इसे, ज्ञान को बढ़ाओ, यही विजय दिलाती है।।

कुछ भी हो भले, अंतिम अवसर है, लक्ष्य पाना है।

इस बार हार को हराकर, जीतकर तुझे आना है।।

- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़