सब छोड़ झमेला - अनिरुद्ध कुमार

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नचा रहा है नाच नचैया,

नाच रहा जग ताताथैया।

सांस डोर से सबको नाथे,

खेल दिखाये  बाबू भैया।

दौड़े भागे पीछे आगे,

श्रीमुख से नित गोली दागे।

मालिक का फर्मान बजाये,

जब देखो तब कूदे फांदे ।

रचनाकार फिरे ले कैंची,

सबपे ध्यान बराबर उसकी।

जाकी जैसी करनी भरनी,

दंडित करता जैसी तैसी।

विधना का विधान अलबेला,

जैसा चाहे करता खेला।

जब चाहे फर्मान सुनाता,

चल देता सब छोड़ झमेला।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड