भारत बनें जग रहनुमा - अनिरुद्ध कुमार

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जब ना रहूँ तो रूठना,

बहती हवा से पूछना।

माहौल क्यों है अनमना?

क्यों बाग में बादल घना?

यह दर्द का संगीत क्यों?

दिल तोड़नें की रीत क्यों?

ये हार क्या, ये जीत क्यों?

सारें यहाँ भयभीत क्यों?

हर चश्म की तिरछी नजर,

अंजान सी, लगती डगर।

जीवन भटकता राह पर।

माथे शिकन कैसी लहर।

जो हो रहा क्या ठीक है?

यह प्यार का संगीत है?

कोई जरा आ के बता,

ये दौर क्यों लगता नया?

ये बागबाँ अपनी जमीं

देखें चलो क्या है कमीं

आवाम क्यों भयभीत है?

रूठी हुई क्यों गीत है?

फिर गुनगुनाये ये जहाँ

हर शख्स को होये गुमां।

माहौल होये खुशनुमा।

भारत बनें जग रहनुमा।

- अनिरुद्ध कुमार सिंह

धनबाद, झारखंड