हिंदी ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर

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फिजा बेसक विषैली है मगर ईमान जिन्दा है

घने आतंकी  साये हैं मगर इन्सान जिन्दा है

बमों, बारूद तोपों से हमें वो क्या डराएंगे ,

खुदा का खौफ खाए वो मेरा भगवन जिन्दा है

कि हर पेचीदगी का हल निकलता दीन दुनियाँ में

मगर फितरत में तो उनकी अभी शैतान जिन्दा है

मेरे बस इक इशारे पर मिलेंगे खाक में जा वो ,

मगर भारत की माँटी में अभी ईमान जिन्दा है

जरा सी बात पर हमको दिखाते हैं छुरे ,चाकू ,

लहू बहती शिराओं में ये हिंदुस्तान जिन्दा है

कई मौकों पै उसने आजमा ली शक्ति हिंदू की ,

हमारी नस्ल में अब भी वही तूफान जिन्दा है

बसे हैं भक्त भोले के रहा है साथ मौला भी ,

सभी धर्मों की मेरे देश में पहचान  जिन्दा है

इरादे ठीक होंगे यदि हमें तब हानि क्या होगी ,

अभी "हलधर" के मन में जीत का अरमान जिन्दा है ।।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून